Search This Blog

Deepawali 2014-How to worship malaxmi with mantras

diwali 2014 laxmi pujan mantras
Diwali 2014-Mahalaxmi mantras

Diwali 2014 celebration

Diwali is celebrated on Amavasya of the Kartik month (October 23, Thursday)of every year. Deepawali is the biggest festival of Hindus. On this day, the mother goddess of wealth Laxmi is worshiped. According to astrology auspicious day to provide measures very quickly. Maa Lakshmi Diwali sum of the measures are pleased to seeker and his wishes are fulfilled. Today we measure the amount you are told Diwali. These measures are very simple and unmistakable.

In ancient times the sea-churning were received from the fourteen gems. Lakshmi is one of the most unique gemstone. Lakshmi is the wife of Lord Vishnu as the selection. Lakshmi Kartik month when the moon had appeared from the sea. Rows of the dark moon night lights are lit at home, welcome and worship of Lakshmi. Starting from October 21 this year Deepotsv. Here Deepotsv the five nodes associated with the particular information in five days and the best time for Lakshmi Puja ...

House of worship on the day of Diwali is usually all. So pundits are rare. Mother Lakshmi Pandit, even without such times is to be worshiped. There are some work related to worship the same gods grace of worship is considered complete and the receiving end. Sodsopchar special importance in the worship of the 16 methods.

In this method, according to the scriptures, the goddess is worshiped their guest as a sixteen items. When we relate to God in worship. Goddess and god is worshiped as a present. Called for the worship of God is the beginning of the method. Salagrama statue or other symbols such as the invocation of God, is Baneshwar gender or witch. Anyone who worship the deities of this method, which is occupied by Lakshmi is always at her house.

The Name Of Astlaxmi & Pujan Mantra of Laxmi

There are eight forms of Mahalakshmi known as Sanatana Dharma. He has been called the Ashta Mahalaxmi. The meditation and worship, develops qualities of success in life. Ashta Mahalaxmi after a person's happiness can get all the pleasure. Here the Ashta Mahalaxmi mantra appearance and their worship ...

सनातन धर्म में महालक्ष्मी के आठ स्वरूप माने गए हैं। इन्हें अष्ट महालक्ष्मी कहा गया है। इनका ध्यान और पूजन जीवन में सफलता के गुण विकसित करता है। अष्ट महालक्ष्मी की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो सकते हैं। यहां जानिए अष्ट महालक्ष्मी के स्वरूप और उनके पूजन मंत्र...

1. द्विभुजा लक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की दो भुजाएं हैं। हाथ में कमल एवं समस्त आभूषणों से विभूषित दिव्य स्वरूपा लक्ष्मी को भगवान श्रीहरि के समीप प्रतिष्ठित कर उनका ध्यान निम्न श्लोक से करते हैं-

हरे: समीपे कर्तव्या लक्ष्मीस्तु द्विभुजा नृप।
दिव्यरूपाम्बजुजकरा सर्वाभरणभूषिता॥

2. गजलक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की चार भुजाएं मानी गई हैं। वे श्वेत यानी सफेद, शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं और सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। सिंहासन सुंदर कर्णिका से युक्त अष्टदल अर्थात आठ पंखुड़ियों वाले कमल के फूल वाला है। उनके दाहिने हाथ में कमल का फूल रहता है और बाएं हाथ में अमृत से भरा कलश। दो हाथों में बेल और शंख धारण किए हुए। उनके पार्श्व भाग में दो गजराज यानी हाथी और देवी के मस्तक पर कमल का फूल विभूषित रहता है। गजलक्ष्मी का ध्यान इस मंत्र से करें-

लक्ष्मी शुक्लाम्बरा देवी रूपेणप्रतिमा भुवि।
पृथक् चतुर्भुजा कार्या देवी सिंहासने शुभा॥
सिंहासनेऽस्या: कर्तव्यं कमलं यारुकर्णिकम्।
अष्टïपत्रं महाभागा कर्णिकायां सुसंस्थिता॥
विनायकवदासीना देवी कार्या चतुर्भुजा।
बृहन्नालं करे कार्ये तस्याश्च कमलं शुभम्॥
दक्षिणे यादवश्रेष्ठï केयूरप्रांतसंस्थितम्।
वामेऽमृतघट: कार्यस्तथा राजन् मनोहर:॥
तस्या अन्यौ करौ कार्यौ बिल्वशङ्खधरौ द्विज।
आवर्जितकरं कार्ये तत्पृष्ठे कुञ्जरद्वयम्॥
देव्याश्च मस्तके कार्ये पद्मं चापि मनोहरम्।

3. महालक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी सभी आभूषणों से भूषित रहती हैं। उनके दाहिनी ओर के निचले हाथ में पात्र और उससे ऊपर वाले हाथ मे गदा रहती है। बाएं भाग के निचले हाथ में श्रीफल व ऊपर वाले हाथ में गदा रहती है। इनका ध्यान इस मंत्र के साथ किया जाता है-
लक्ष्मीवत्सा तदा कार्या सर्वाभरणभूषिता॥
दक्षिणाध:करे पात्रमूर्ध्वे कौमोदर्की तत:।
वामोर्ध्वो खेटकं चैव श्रीफलं तदध:करे॥
बिभ्रती मस्तके लिङ्ग पूजनीया विभूतये।

4. श्रीदेवी

इस रूप में भगवती के दाहिने एवं बाएं हाथ में पाश, अक्षमाला, कमल और अंकुश धारण किए हुए कमल के आसन (पद्मासन) पर विराजमान रहती हैं। उनका ध्यान इस मंत्र से किया जाता है-
पाशाक्षमालिकाम्भोजसृणिभिर्वामसौम्ययो:।
पद्मासनस्थां ध्यायेत श्रियं त्रेलोक्यमातरम्॥

5. वीरलक्ष्मी

ये भी पद्मासन अर्थात कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके दोनों हाथों में कमल रहते हैं और नीचे के हाथों में वरद और अभयमुद्रा सुशोभित होती हैं। इनका ध्यान इस मंत्र से करें-
वीर लक्ष्मीरितिख्याता वरदाभयहस्तिनी।
उध्र्वपद्मद्वयौ हस्तौ तथा पद्मासने स्थिता॥

6. द्विभुजा वीरलक्ष्मी

इस रूप में महालक्ष्मी का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में तथा बायां हाथ वरद मुद्रा में रहता है। इनकी जांघें कमलदल के समान हैं। इनका ध्यान इस मंत्र से करें-
दक्षिणे त्वभयं बिद्धि ह्युत्तरे वरदं तथा।
ऊरू पद्मदलाकारौ वीरश्रीमूर्तिलक्षणम्॥

7. अष्टभुजा वीरलक्ष्मी

इनके हाथ पाश, अंकुश, अक्ष सूत्र, वरद मुद्रा, अभय मुद्रा, गदा, कमल और पात्र से युक्त रहते हैं। इनका ध्यान इस तरह किया जाता है-
पाशांकुशाक्षसूत्रवराभयगदापद्मपात्रहस्ता कार्या।

8. प्रसन्न लक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की आभा स्वर्ण के समान तेजस्वी है। ये सुनहरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं तथा समस्त आभूषणों से सुशोभित हैं। इनके हाथों में बिजौरा, नीबू, स्वर्णघट और स्वर्णकमल रहते हैं। ये समस्त जीवों की माता हैं और भगवान विष्णु के बाएं अंग में स्थित रहती हैं। इनका ध्यान ऐसे करें-
वंदे लक्ष्मीं यपरशिवमयीं शुद्धजाम्बूनदाभां।
तेजोरूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्ज्वलाङ्गीम्॥
बीजापूरं कनककलशं हेमपद्मं दधानां-
माद्यां शक्तिं सकलजननीं विष्णुवामाङ्कसंस्थाम्॥

Mahalakshami Pujan Method

शास्त्रों के अनुसार इस विधि में देवी या देवता को अतिथि मानकर सोलह वस्तुओं से उनका पूजन किया जाता है। पूजन में हम भगवान से संबंध स्थापित करते हैं। देवी व देवता को उपस्थित मानकर पूजा की जाती है। इस पूजा विधि का आरंभ भगवान के आवाहन से होता है। भगवान का आवाहन प्रतिमा या अन्य प्रतीक जैसे शालिग्राम, बाणेश्वर लिंग या सुपारी में किया जाता है। जो भी व्यक्ति इस विधि से देवी-देवताओं का पूजन करता है, उसके घर में सदैव लक्ष्मी का वास होता है।

पाद्य- भगवान के पैर धुलने की भावना से जल चढ़ाया जाता है।
अर्घ्य- केशर, चंदन, अक्षत यानी बिना टूटे चावल, फूल मिले जल से भगवान का स्वागत किया जाता है।
आचमन- भगवान को शुद्धि के लिए हाथ पर जल दिया जाता है।
स्नान- भगवान को शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।
वस्त्र- स्नान के बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। प्रतीक रूप में पूजा का धागा भी दिया जाता है।
आभूषण- भगवान को उनके स्वरूप के अनुरूप गहने व शस्त्र चढ़ाए जाते हैं।
गंध- भगवान का गंध द्वारा सत्कार करते हैं व उनके शरीर पर गंध लगाई जाती है।
अक्षत- बिना टूटे चावल पूजा कर्म के अखंड फल के प्रतीक के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
पुष्प- भगवान को उनकी रुचि के ताजे फूल व मालाएं भेंट की जाती हैं।
धूप- सुगंधित धूप से भगवान को प्रसन्न किया जाता है।
दीप- दीप जलाकर भगवान को ज्योति दिखाई जाती है। भावना होती है कि दीपक के समान प्रकाशवान बनने की।
नैवेद्य- खाने की शुद्ध वस्तुएं फल आदि का भोग लगाया जाता है।
आचमन-तीन बार जल देकर भगवान से शुद्धि की प्रार्थना ही जाती है।
स्तव प्रार्थना- स्तुति कर दु:ख-विघ्न को समाप्त करने व सर्व कल्याण की प्रार्थना भगवान से जाती है।
आरती नमस्कार- षोडशोपचार पूजा का समापन आरती, मंत्र पुष्पांजलि व नमस्कार से होता है। आरती भगवान के स्वरूप के स्मरण के लिए है। अपनी इच्छाएं पुष्पों के साथ भगवान को समर्पित करना पुष्पांजलि है। नमस्कार के रूप में भगवान को अपना अहंकार समर्पित करना चाहिए।

रिचार्ज करता है षोडशोपचार

यह पूजा करने से हमारा भगवान से जुड़ाव होता है। इन विधियों द्वारा देवता का पूजन करने से हमारी आत्मशुद्धि होती है जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा से हमें सद्गुण और बेहतर आचार-विचार प्राप्त होते हैं। इस तरीके से हम षोडशोपचार से हम रिचार्ज होते हैं।