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Diwali 2014: Know The Tips For Getting Blessings Of Laxmi In Hindi

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Diwali 2014 Know how to worship Godess Laxmi

How to worship Godess Laxmi on diwali

Diwali (23 October), the best moment of the night to worship at the Mahalaxmi. Worship with the sharp aroma incense sticks, incense, perfume, Ashtgand Use. Also use red sandalwood. In connection with the recognition that the sharp aroma raincoat Lakshmi are pleased at our house.

In this method, according to the scriptures, the goddess is worshiped their guest as a sixteen items. When we relate to God in worship. Goddess and god is worshiped as a present. Called for the worship of God is the beginning of the method. Salagrama statue or other symbols such as the invocation of God, is Baneshwar gender or witch. Anyone who worship the deities of this method, which is occupied by Lakshmi is always at her house.

Tips For Getting Blessings Of Laxmi In Hindi on diwali

यहां जानिए लक्ष्मी कृपा पाने के लिए ऐसे ही छोटे-छोटे उपाय... यहां बताए जा रहे उपायों में से आप कई उपाय भी कर सकते हैं या सिर्फ कोई भी पांच उपाय भी कर सकते हैं।

- दीपावली की रात को अशोक वृक्ष के नीचे घी का दीपक लगाएं एवं वृक्ष का पूजन करें। अगले दिन उस वृक्ष की जड़ लेकर आएं तथा तिजोरी में रखें। धन की आवक बनी रहेगी।
- पांच जोड़ी गोमती चक्र को लाल वस्त्र में बांधकर घर की चौखट के ऊपर बांधने से धन संबंधी कामों में लाभ मिल सकता है।
- दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता बाहर चली जाती है। मां लक्ष्मी घर में आती हैं।
- दीपावली पर तेल का दीपक जलाएं और दीपक में एक लौंग डालकर हनुमानजी की आरती करें। किसी हनुमान मंदिर जाकर ऐसा दीपक भी लगा सकते हैं।
- रात को सोने से पहले किसी चौराहे पर तेल का दीपक जलाएं और घर लौटकर आ जाएं। ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें।
- दीपावली के दिन अशोक के पेड़ के पत्तों से वंदनद्वार बनाएं और इसे मुख्य दरवाजे पर लगाएं। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाएगी।
- कभी भी किसी भी बुजुर्ग इंसान का अपमान नहीं करना चाहिए और दीपावली के दिन विशेष रूप से उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद ग्रहण करें। ऐसा करने पर बड़ी-बड़ी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
- महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियां भी रखनी चाहिए। ये कौडिय़ा पूजन में रखने से महालक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती हैं। आपकी धन संबंधी सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।
- दीपावली की रात लक्ष्मी पूजा करते समय एक थोड़ा बड़ा घी का दीपक जलाएं, जिसमें नौ बत्तियां लगाई जा सके। सभी 9 बत्तियां जलाएं और लक्ष्मी पूजा करें।
- दीपावली की रात में लक्ष्मी पूजन के साथ ही अपनी दुकान, कम्प्यूटर आदि ऐसी चीजों की भी पूजा करें, जो आपकी कमाई का साधन हैं।
- दीपावली से यह एक नियम रोज के लिए बना लें कि सुबह जब भी उठें तो उठते ही सबसे पहले अपनी दोनों हथेलियों का दर्शन करना चाहिए।
- दीपावली के दिन घर से निकलते ही यदि कोई सुहागन स्त्री लाल रंग की पारंपरिक ड्रेस में दिख जाए तो समझ लें आप पर महालक्ष्मी की कृपा होने वाली है। यह एक शुभ शकुन है। ऐसा होने पर किसी जरूरतमंद सुहागन स्त्री को सुहाग की सामग्री दान करें।
- दीपावली की रात में लक्ष्मी और कुबेर देव का पूजन करें और यहां दिए एक मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा।
- महालक्ष्मी के पूजन में गोमती चक्र भी रखना चाहिए। गोमती चक्र भी घर में धन संबंधी लाभ दिलाता है।
-पूजा में लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और श्रीयंत्र रखना चाहिए। यदि स्फटिक का श्रीयंत्र हो तो सर्वश्रेष्ठ रहता है। एकाक्षी नारियल, दक्षिणावर्त शंख, हत्थाजोड़ी की भी पूजा करनी चाहिए।
- दीपावली से एक नियम हर रोज के लिए बना लें। आपके घर में जब भी खाना बने तो उसमें से सबसे पहली रोटी गाय को खिलाएं।
- शास्त्रों के अनुसार एक पीपल का पौधा लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार को कोई दुख नहीं सताता है। उस इंसान को कभी भी पैसों की कमी नहीं रहती है। पीपल का पौधा लगाने के बाद उसे नियमित रूप से जल अर्पित करना चाहिए। जैसे-जैसे यह वृक्ष बड़ा होगा आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती जाएगी, धन बढ़ता जाएगा। पीपल के बड़े होने तक इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए तभी आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होंगे।
- दीपावली पर लक्ष्मी का पूजन करने के लिए स्थिर लग्न श्रेष्ठ माना जाता है। इस लग्न में पूजा करने पर महालक्ष्मी स्थाई रूप से घर में निवास करती हैं।
- दीपावाली पर श्रीसूक्त एवं कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। रामरक्षा स्तोत्र या हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ भी किया जा सकता है।
- किसी शिव मंदिर जाएं और वहां शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। ध्यान रहें सभी चावल पूर्ण होने चाहिए। खंडित चावल शिवलिंग पर चढ़ाना नहीं चाहिए।
- अपने घर के आसपास किसी पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। यह उपाय दीपावली की रात में किया जाना चाहिए। ध्यान रखें दीपक लगाकर चुपचाप अपने घर लौट आए, पीछे पलटकर न देखें।
- यदि संभव हो सके तो दीपावली की देर रात तक घर का मुख्य दरवाजा खुला रखें। ऐसा माना जाता है कि दिवाली की रात में महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों के घर जाती हैं।
- दीपावली की रात में हल्दी की 11 गांठ लें। इन्हें पीले कपड़े में बांध लें। घर के पूजन कक्ष में लक्ष्मी-गणेश के फोटो के सामने घी का दीपक जलाएं। चंदन-पुष्प आदि चढ़ाएं। इसके बाद यहां दिए गए मंत्र का जप 11 माला करें। मंत्र- ''ऊँ श्रीगणेशाय नम: का जप करें। इसके बाद पीले कपड़े में बंधी हुई हल्दी की गांठों को निकालें और धन के स्थान में रख दें।
-महालक्ष्मी को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाने चाहिए। लक्ष्मी पूजा में दीपक दाएं, अगरबत्ती बाएं, पुष्य सामने व नैवेद्य थाली में दक्षिण में रखना श्रेष्ठ रहता है।
- लक्ष्मी पूजन के समय एक नारियल लें और उस पर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि अर्पित करें और उसे भी पूजा में रखें।
- दीपावली के दिन झाड़ू अवश्य खरीदना चाहिए। पूरे घर की सफाई नई झाड़ू से करें। जब झाड़ू का काम न हो तो उसे छिपाकर रखना चाहिए।
- इस दिन अमावस्या रहती है और इस तिथि पर पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर शनि के दोष और कालसर्प दोष समाप्त हो जाते हैं।
- एक बात का विशेष ध्यान रखें कि माह की हर अमावस्या पर पूरे घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई की जानी चाहिए। साफ-सफाई के बाद घर में धूप-दीप-ध्यान करें। इससे घर का वातावरण पवित्र और बरकत देने वाला बना रहेगा।
- दीपावली पर ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करते समय नहाने के पानी में कच्चा दूध और गंगाजल मिलाएं।
- स्नान के बाद अच्छे वस्त्र धारण करें और सूर्य को जल अर्पित करें। जल अर्पित करने के साथ ही लाल पुष्प भी सूर्य को चढ़ाएं।
- किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को अनाज का दान करें। अनाज के साथ ही वस्त्र का दान करना भी श्रेष्ठ रहता है।
- सप्ताह में एक बार किसी जरूरतमंद सुहागिन स्त्री को सुहाग का सामना दान करें। इस उपाय से देवी लक्ष्मी तुरंत ही प्रसन्न होती हैं और धन संबंधी परेशानियों को दूर करती हैं। ध्यान रखें यह उपाय नियमित रूप से हर सप्ताह करना चाहिए।
- पीपल के 11 पत्ते तोड़ें और उन पर श्रीराम का नाम लिखें। राम नाम लिखने के लिए चंदन का उपयोग किया जा सकता है। यह कार्य पीपल के नीचे बैठकर करेंगे तो जल्दी शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। राम नाम लिखने के बाद इन पत्तों की माला बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें।
- कलयुग में हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए कई प्रकार उपाय बताए गए हैं। यदि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो यह चमत्कारी फल प्रदान करने वाला उपाय है।
- शनि दोषों से मुक्ति के लिए तो पीपल के वृक्ष के उपाय रामबाण हैं। शनि की साढ़ेसाती और ढय्या के बुरे प्रभावों को नष्ट करने के लिए पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करनी चाहिए। इसके साथ ही शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक भी लगाना चाहिए।
-यदि कोई व्यक्ति दीपावली के दिन किसी पीपल के वृक्ष के नीचे छोटा सा शिवलिंग स्थापित करता है तो उसकी जीवन में कभी भी कोई परेशानियां नहीं आएंगी। यदि कोई भयंकर परेशानियां चल रही होंगी वे भी दूर हो जाएंगी। पीपल के नीचे शिवलिंग स्थापित करके उसकी नियमित पूजा भी करनी चाहिए। इस उपाय से गरीब व्यक्ति भी धीरे-धीरे मालामाल हो जाता है।
- प्रथम पूज्य श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें। दूर्वा की 21 गांठ गणेशजी को चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। दीपावली के शुभ दिन यह उपाय करने से गणेशजी के साथ महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।
- दीपावली से प्रतिदिन सुबह घर से निकलने से पहले केसर का तिलक लगाएं। ऐसा हर रोज करें, महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।
- यदि संभव हो सके तो दीपावली पर किसी गरीब व्यक्ति को काले कंबल का दान करें। ऐसा करने पर शनि और राहु-केतु के दोष शांत होंगे और कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाएंगी।
- जो लोग धन का संचय बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें तिजोरी में लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। इसके प्रभाव से धन का संचय बढ़ता है। महालक्ष्मी का ऐसा फोटो रखें, जिसमें लक्ष्मी बैठी हुईं दिखाई दे रही हैं।
- महालक्ष्मी के पूजन में दक्षिणावर्ती शंख भी रखना चाहिए। यह शंख महालक्ष्मी को अतिप्रिय है। इसकी पूजा करने पर घर में सुख-शांति का वास होता है।
- दीपावली के पांचों दिनों में घर में शांति बनाए रखें। किसी भी प्रकार का क्लेश, वाद-विवाद न करें। जिस घर में शांति रहती है वहां देवी लक्ष्मी हमेशा निवास करती हैं।
- दीपावली के दिन यदि संभव हो सके तो किसी किन्नर से उसकी खुशी से एक रुपया लें और इस सिक्के को अपने पर्स में रखें। बरकत बनी रहेगी।
- उपाय के अनुसार दीपावली के दिन 3 अभिमंत्रित गोमती चक्र, 3 पीली कौडिय़ां और 3 हल्दी गांठों को एक पीले कपड़ें में बांधें। इसके बाद इस पोटली को तिजोरी में रखें। धन लाभ के योग बनने लगेंगे।
- महालक्ष्मी के मंत्र: ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम:
इस मंत्र का जप करें। मंत्र जप के लिए कमल के गट्टे की माला का उपयोग करें। दीपावली पर कम से कम 108 बार इस मंत्र का जप करें।
- दीपावली पर श्रीयंत्र के सामने अगरबत्ती व दीपक लगाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें। फिर श्रीयंत्र का पूजन करें और कमलगट्टे की माला से महालक्ष्मी के मंत्र: ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम: का जप करें।
- किसी भी मंदिर में झाड़ू का दान करें। यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मंदिर हो तो वहां गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती का दान करें।
- यदि धन संबंधियों परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो किसी भी श्रेष्ठ मुहूर्त में हनुमानजी का यह उपाय करें।
उपाय के अनुसार किसी पीपल के वृक्ष का एक पत्ता तोड़ें। उस पत्ते पर कुमकुम या चंदन से श्रीराम का नाम लिखें। इसके बाद पत्ते पर मिठाई रखें और यह हनुमानजी को अर्पित करें। इस उपाय से भी धन लाभ होता है।
- घर के मुख्य द्वार पर कुमकुम से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। द्वार के दोनों ओर कुमकुम से ही शुभ-लाभ लिखें।
-दीपावली के दिन श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा घर में लाएंगे तो हमेशा बरकत बनी रहेगी। परिवार के सदस्यों को पैसों की कमी नहीं आएगी।
- दीपावली पर लक्ष्मी पूजन में हल्दी की गांठ भी रखें। पूजन पूर्ण होने पर हल्दी की गांठ को घर में उस स्थान पर रखें, जहां धन रखा जाता है।
- महालक्ष्मी के चरण चिह्न से आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो सकती है और सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। ज्योतिष के अनुसार लक्ष्मी के चरण चिह्न से अशुभ ग्रहों का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इसके अलावा हमारे घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती। सभी सदस्यों में पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है।
- यदि संभव हो सके तो इस दिन किसी तालाब या नदी में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। शास्त्रों के अनुसार इस पुण्य कर्म से बड़े-बड़े संकट भी दूर हो जाते हैं।
- घर में स्थित तुलसी के पौधे के पास दीपावली की रात में दीपक जलाएं। तुलसी को वस्त्र अर्पित करें।
-स्फटिक से बना श्रीयंत्र दीपावली के दिन बाजार से खरीदकर लाएं। श्रीयंत्र को लाल वस्त्र में लपेटकर तिजोरी में रखें। कभी भी पैसों की कमी नहीं होगी।
-दीपावली पर सुबह-सुबह शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल अर्पित करें। जल में यदि केसर भी डालेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।
- महालक्ष्मी के ऐसे चित्र का पूजन करें, जिसमें लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु के पैरों के पास बैठी हैं। ऐसे चित्र का पूजन करने पर देवी बहुत जल्द प्रसन्न होती हैं।
- लक्ष्मी पूजन में सुपारी रखें। सुपारी पर लाल धागा लपेटकर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और पूजन के बाद इस सुपारी को तिजोरी में रखें।

Deepawali 2014-How to worship malaxmi with mantras

diwali 2014 laxmi pujan mantras
Diwali 2014-Mahalaxmi mantras

Diwali 2014 celebration

Diwali is celebrated on Amavasya of the Kartik month (October 23, Thursday)of every year. Deepawali is the biggest festival of Hindus. On this day, the mother goddess of wealth Laxmi is worshiped. According to astrology auspicious day to provide measures very quickly. Maa Lakshmi Diwali sum of the measures are pleased to seeker and his wishes are fulfilled. Today we measure the amount you are told Diwali. These measures are very simple and unmistakable.

In ancient times the sea-churning were received from the fourteen gems. Lakshmi is one of the most unique gemstone. Lakshmi is the wife of Lord Vishnu as the selection. Lakshmi Kartik month when the moon had appeared from the sea. Rows of the dark moon night lights are lit at home, welcome and worship of Lakshmi. Starting from October 21 this year Deepotsv. Here Deepotsv the five nodes associated with the particular information in five days and the best time for Lakshmi Puja ...

House of worship on the day of Diwali is usually all. So pundits are rare. Mother Lakshmi Pandit, even without such times is to be worshiped. There are some work related to worship the same gods grace of worship is considered complete and the receiving end. Sodsopchar special importance in the worship of the 16 methods.

In this method, according to the scriptures, the goddess is worshiped their guest as a sixteen items. When we relate to God in worship. Goddess and god is worshiped as a present. Called for the worship of God is the beginning of the method. Salagrama statue or other symbols such as the invocation of God, is Baneshwar gender or witch. Anyone who worship the deities of this method, which is occupied by Lakshmi is always at her house.

The Name Of Astlaxmi & Pujan Mantra of Laxmi

There are eight forms of Mahalakshmi known as Sanatana Dharma. He has been called the Ashta Mahalaxmi. The meditation and worship, develops qualities of success in life. Ashta Mahalaxmi after a person's happiness can get all the pleasure. Here the Ashta Mahalaxmi mantra appearance and their worship ...

सनातन धर्म में महालक्ष्मी के आठ स्वरूप माने गए हैं। इन्हें अष्ट महालक्ष्मी कहा गया है। इनका ध्यान और पूजन जीवन में सफलता के गुण विकसित करता है। अष्ट महालक्ष्मी की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो सकते हैं। यहां जानिए अष्ट महालक्ष्मी के स्वरूप और उनके पूजन मंत्र...

1. द्विभुजा लक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की दो भुजाएं हैं। हाथ में कमल एवं समस्त आभूषणों से विभूषित दिव्य स्वरूपा लक्ष्मी को भगवान श्रीहरि के समीप प्रतिष्ठित कर उनका ध्यान निम्न श्लोक से करते हैं-

हरे: समीपे कर्तव्या लक्ष्मीस्तु द्विभुजा नृप।
दिव्यरूपाम्बजुजकरा सर्वाभरणभूषिता॥

2. गजलक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की चार भुजाएं मानी गई हैं। वे श्वेत यानी सफेद, शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं और सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। सिंहासन सुंदर कर्णिका से युक्त अष्टदल अर्थात आठ पंखुड़ियों वाले कमल के फूल वाला है। उनके दाहिने हाथ में कमल का फूल रहता है और बाएं हाथ में अमृत से भरा कलश। दो हाथों में बेल और शंख धारण किए हुए। उनके पार्श्व भाग में दो गजराज यानी हाथी और देवी के मस्तक पर कमल का फूल विभूषित रहता है। गजलक्ष्मी का ध्यान इस मंत्र से करें-

लक्ष्मी शुक्लाम्बरा देवी रूपेणप्रतिमा भुवि।
पृथक् चतुर्भुजा कार्या देवी सिंहासने शुभा॥
सिंहासनेऽस्या: कर्तव्यं कमलं यारुकर्णिकम्।
अष्टïपत्रं महाभागा कर्णिकायां सुसंस्थिता॥
विनायकवदासीना देवी कार्या चतुर्भुजा।
बृहन्नालं करे कार्ये तस्याश्च कमलं शुभम्॥
दक्षिणे यादवश्रेष्ठï केयूरप्रांतसंस्थितम्।
वामेऽमृतघट: कार्यस्तथा राजन् मनोहर:॥
तस्या अन्यौ करौ कार्यौ बिल्वशङ्खधरौ द्विज।
आवर्जितकरं कार्ये तत्पृष्ठे कुञ्जरद्वयम्॥
देव्याश्च मस्तके कार्ये पद्मं चापि मनोहरम्।

3. महालक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी सभी आभूषणों से भूषित रहती हैं। उनके दाहिनी ओर के निचले हाथ में पात्र और उससे ऊपर वाले हाथ मे गदा रहती है। बाएं भाग के निचले हाथ में श्रीफल व ऊपर वाले हाथ में गदा रहती है। इनका ध्यान इस मंत्र के साथ किया जाता है-
लक्ष्मीवत्सा तदा कार्या सर्वाभरणभूषिता॥
दक्षिणाध:करे पात्रमूर्ध्वे कौमोदर्की तत:।
वामोर्ध्वो खेटकं चैव श्रीफलं तदध:करे॥
बिभ्रती मस्तके लिङ्ग पूजनीया विभूतये।

4. श्रीदेवी

इस रूप में भगवती के दाहिने एवं बाएं हाथ में पाश, अक्षमाला, कमल और अंकुश धारण किए हुए कमल के आसन (पद्मासन) पर विराजमान रहती हैं। उनका ध्यान इस मंत्र से किया जाता है-
पाशाक्षमालिकाम्भोजसृणिभिर्वामसौम्ययो:।
पद्मासनस्थां ध्यायेत श्रियं त्रेलोक्यमातरम्॥

5. वीरलक्ष्मी

ये भी पद्मासन अर्थात कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके दोनों हाथों में कमल रहते हैं और नीचे के हाथों में वरद और अभयमुद्रा सुशोभित होती हैं। इनका ध्यान इस मंत्र से करें-
वीर लक्ष्मीरितिख्याता वरदाभयहस्तिनी।
उध्र्वपद्मद्वयौ हस्तौ तथा पद्मासने स्थिता॥

6. द्विभुजा वीरलक्ष्मी

इस रूप में महालक्ष्मी का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में तथा बायां हाथ वरद मुद्रा में रहता है। इनकी जांघें कमलदल के समान हैं। इनका ध्यान इस मंत्र से करें-
दक्षिणे त्वभयं बिद्धि ह्युत्तरे वरदं तथा।
ऊरू पद्मदलाकारौ वीरश्रीमूर्तिलक्षणम्॥

7. अष्टभुजा वीरलक्ष्मी

इनके हाथ पाश, अंकुश, अक्ष सूत्र, वरद मुद्रा, अभय मुद्रा, गदा, कमल और पात्र से युक्त रहते हैं। इनका ध्यान इस तरह किया जाता है-
पाशांकुशाक्षसूत्रवराभयगदापद्मपात्रहस्ता कार्या।

8. प्रसन्न लक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की आभा स्वर्ण के समान तेजस्वी है। ये सुनहरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं तथा समस्त आभूषणों से सुशोभित हैं। इनके हाथों में बिजौरा, नीबू, स्वर्णघट और स्वर्णकमल रहते हैं। ये समस्त जीवों की माता हैं और भगवान विष्णु के बाएं अंग में स्थित रहती हैं। इनका ध्यान ऐसे करें-
वंदे लक्ष्मीं यपरशिवमयीं शुद्धजाम्बूनदाभां।
तेजोरूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्ज्वलाङ्गीम्॥
बीजापूरं कनककलशं हेमपद्मं दधानां-
माद्यां शक्तिं सकलजननीं विष्णुवामाङ्कसंस्थाम्॥

Mahalakshami Pujan Method

शास्त्रों के अनुसार इस विधि में देवी या देवता को अतिथि मानकर सोलह वस्तुओं से उनका पूजन किया जाता है। पूजन में हम भगवान से संबंध स्थापित करते हैं। देवी व देवता को उपस्थित मानकर पूजा की जाती है। इस पूजा विधि का आरंभ भगवान के आवाहन से होता है। भगवान का आवाहन प्रतिमा या अन्य प्रतीक जैसे शालिग्राम, बाणेश्वर लिंग या सुपारी में किया जाता है। जो भी व्यक्ति इस विधि से देवी-देवताओं का पूजन करता है, उसके घर में सदैव लक्ष्मी का वास होता है।

पाद्य- भगवान के पैर धुलने की भावना से जल चढ़ाया जाता है।
अर्घ्य- केशर, चंदन, अक्षत यानी बिना टूटे चावल, फूल मिले जल से भगवान का स्वागत किया जाता है।
आचमन- भगवान को शुद्धि के लिए हाथ पर जल दिया जाता है।
स्नान- भगवान को शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।
वस्त्र- स्नान के बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। प्रतीक रूप में पूजा का धागा भी दिया जाता है।
आभूषण- भगवान को उनके स्वरूप के अनुरूप गहने व शस्त्र चढ़ाए जाते हैं।
गंध- भगवान का गंध द्वारा सत्कार करते हैं व उनके शरीर पर गंध लगाई जाती है।
अक्षत- बिना टूटे चावल पूजा कर्म के अखंड फल के प्रतीक के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
पुष्प- भगवान को उनकी रुचि के ताजे फूल व मालाएं भेंट की जाती हैं।
धूप- सुगंधित धूप से भगवान को प्रसन्न किया जाता है।
दीप- दीप जलाकर भगवान को ज्योति दिखाई जाती है। भावना होती है कि दीपक के समान प्रकाशवान बनने की।
नैवेद्य- खाने की शुद्ध वस्तुएं फल आदि का भोग लगाया जाता है।
आचमन-तीन बार जल देकर भगवान से शुद्धि की प्रार्थना ही जाती है।
स्तव प्रार्थना- स्तुति कर दु:ख-विघ्न को समाप्त करने व सर्व कल्याण की प्रार्थना भगवान से जाती है।
आरती नमस्कार- षोडशोपचार पूजा का समापन आरती, मंत्र पुष्पांजलि व नमस्कार से होता है। आरती भगवान के स्वरूप के स्मरण के लिए है। अपनी इच्छाएं पुष्पों के साथ भगवान को समर्पित करना पुष्पांजलि है। नमस्कार के रूप में भगवान को अपना अहंकार समर्पित करना चाहिए।

रिचार्ज करता है षोडशोपचार

यह पूजा करने से हमारा भगवान से जुड़ाव होता है। इन विधियों द्वारा देवता का पूजन करने से हमारी आत्मशुद्धि होती है जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा से हमें सद्गुण और बेहतर आचार-विचार प्राप्त होते हैं। इस तरीके से हम षोडशोपचार से हम रिचार्ज होते हैं।

Guru Pushya 2014:गुरु पुष्य: जानिए लक्ष्मी पूजन की विधि, शुभ मुहूर्त व उपाय

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Constellation Pushya Krishna movement in favor of the Kartik month is considered very auspicious. Purchased the day of Pushya Nakshatra is particularly important because it is recognized that such purchases will remain useful for a long time and anything that is auspicious. The day of worship of the Goddess Lakshmi to dwell in the house of wealth is permanent. This time October 16, Thursday auspicious Pushya yoga guru has become. Thus the worship of Goddess Lakshmi on this day .
Clothes for the worship of the sacred seat of a post or install the idol of Goddess Mahalakshmi. Puja day to clean the house, take a sacred place of worship and self-devotedly pious reverence and to worship Mahalaxmi. Srimahalkshmiji Kesryukt in a clean vessel near the Statue of sandalwood lotus Ashtdl rupees by creating jewelry or both Rkenn and worship together. First, sprinkle water on the east or north-facing and self-worship by reading the contents of the following mantra Water Chidken-
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पुष्य नक्षत्र का आना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन खरीदी का विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु लंबे समय तक उपयोगी बनी रहती है तथा शुभ फल देती है। इस दिन यदि माता लक्ष्मी की पूजा की जाए तो घर में स्थाई रूप से धन-संपत्ति का वास रहता है। इस बार 16 अक्टूबर, गुरुवार को गुरु पुष्य का शुभ योग बन रहा है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा इस प्रकार करें-

जानिए लक्ष्मी पूजन की विधि

पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर माता महालक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें। पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक महालक्ष्मी का पूजन करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में केसरयुक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर गहने या रुपए भी रखेंं तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें। सर्वप्रथम पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके स्वयं पर जल छिड़के तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
उसके बाद जल-अक्षत (चावल) लेकर पूजन का संकल्प करें-
संकल्प- आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, गुरुवार है। मैं जो कि अमुक गोत्र (अपना गोत्र बोलें) से हूं। मेरा अमुक नाम (अपना नाम बोलें) है। मैं श्रुति, स्मृति और पुराणों के अनुसार फल प्राप्त करने के लिए और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन, कर्म व वचन से पाप मुक्त होकर व शुद्ध होकर स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए महालक्ष्मी की पूजा करने का संकल्प लेता हूं।
-ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें।
अब बाएं हाथ में चावल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को लक्ष्मी प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ऊँ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊँ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।

अब इन मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
ऊँ महालक्ष्म्यै नम:- इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।

समर्पण- पूजन के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम।
- यह वाक्य उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ दें व माता लक्ष्मी से घर में निवास करने की प्रार्थना करें।

पुष्य नक्षत्र में लक्ष्मी पूजन के शुभ मुहूर्त

सुबह 10:50 से दोपहर 12:25 तक
दोपहर 12:25 से दोपहर 01:50 तक
दोपहर 01:50 से दोपहर 03:20 तक
शाम 04:40 से शाम 06:10 तक
शाम 06:10 से शाम 07:40 तक
रात 07:40 से रात 09:20 तक
दोपहर 12:03 से दोपहर 12:50 तक - अभिजीत मुहूर्त

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Karwa Chauth 2014 -10 things you must remember on Karwa Chauth

Karwa Chauth 2014
Karwa Chauth
Karwa Chauth 2014

Importance of Karwa Chauth

Krishna Paksha of Kartik month Chaturthi is a festival celebrated on the date of Karwa Chauth. This time the festival Oct. 11, on Saturday. It also called Karak Chaturthi.इस दिन महिलाएं दिन भर उपवास रख कर शाम को भगवान श्रीगणेश की पूजा करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के दर्शन करती हैं और उसके बाद ही भोजन करती हैं। Karwa Chauth accomplishment at this time is called the yoga poses. This sum is to provide women prosperity.
According to astrology looking Chaturthi will be October 11 at 10.18 am in the morning. Karwa Chauth fast Wyapani date is the importance of the moon. Chaturthi Moonrise at the time of the evening will be provided by so fast. Siddhi Yoga 6:26 am and will start this morning, which will factor accomplishment provider and prosperity.
Udaykalin horoscope moon is high in the ascendant at that time. At a time when the moon is designed to Adhry. Receipt of funds and happiness factor is the moon. With its high amount and Udaykalin arghya the time and giving darshan of the moon leads to gain wealth and happiness. Moon rise in these particular formulations provides full health.

6 things womens must do on Karwa Chauth

Karwa Chauth is celebrated in October.Once again on the wedding day to protect married women aspire March Makeup fourth day of special significance for married women was considered. 16 things we need to do for women in Hinduism are considered married. माना जाता है कि ये 16 चीजें किसी भी स्त्री के सुहाग का प्रतीक होती हैं और जो स्त्री करवा चौथ के दिन ये 16 काम करती हैं, उनके पति की उम्र लंबी होती है और परस्पर प्रेम बढ़ता है.
1. Bindia - Suhagin women red dot on his forehead with kumkum or vermilion definitely should. It is considered a symbol of prosperity of the family.
बिंदी - सुहागिन स्त्रियों को कुमकुम या सिंदूर से अपने माथे पर लाल बिंदी जरूर लगाना चाहिए. इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
2.wrist bangles Suhagin traditionally believed that women should be filled with wrist bangles.
कंगन और चूड़ियां- हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने उसे दिए थे. पारंपरिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी रहनी चाहिए.
3.Vermilion - Vermilion is considered a symbol of the wedding. After seven rounds of the bride and the groom fills demand means that she will play her lifetime. Therefore, the longevity of their husbands after marriage bride wish to fill with the everyday demands.
सिंदूर - सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है. सात फेरों के बाद जब दूल्हा-दुल्हन की मांग भरता है तो इसका मतलब होता है कि वह उसका साथ जीवन भर निभाएगा. इसलिए विवाह के बाद स्त्री को अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ रोज मांग भरना चाहिए.
4.Mascara - Mascara eye makeup. Besides increasing the beauty of the eyes. Also, mascara delivers from the evil eye. It is also considered a symbol of good luck in religious texts.
काजल - काजल आंखों का श्रृंगार है. इससे आंखों की सुंदरता तो बढ़ती ही है. साथ ही, काजल की बुरी नजर से भी बचाता है. इसे भी धर्म ग्रंथों में सौभाग्य का प्रतीक माना गया है.
5.Mehndi:-Mehndi is considered incomplete without embellishment. So the family Suhagin festival Rchati women have henna in your hands and feet. It is only then considered auspicious symbols of good luck. Also, henna is also good for the skin.
मेहंदी- मेहंदी के बिना सिंगार अधूरा माना जाता है. इसलिए त्योहार पर परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती है. इसे सौभाग्य का शुभ प्रतीक तो माना ही जाता है. साथ ही, मेहंदी लगाना त्वचा के लिए भी अच्छा होता है.
6.Red cloths:- Red fabrics added red wedding dress fitted wedding when the bride is considered auspicious.
लाल कपड़े- शादी के समय दुल्हन को सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा पहनाना शुभ माना जाता है. शादी के बाद भी कोई त्योहार हो या कोई भी शुभ काम हो और घर की स्त्रियां लाल रंग के कपड़े पहने तो बहुत शुभ माना जाता है.
7.garland of flowers:-If a married woman with a garland of flowers scented bath and worship God every day is considered very auspicious. Lakshmi is said to be stable in the house is inhabited by doing so.
गजरा- यदि कोई सुहागन स्त्री रोज सुबह नहाकर सुगंधित फूलों का गजरा लगाकर भगवान की पूजा करती है तो बहुत शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होता है.
8.Gold jewelery The demand for gold jewelery worn in the heart of vermilion is graced with the beauty of a woman. It is also considered a symbol of good luck.
मांग टीका- मांग के बीचों बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर स्त्री की सुंदरता में चार चांद लगा देता है. इसे भी सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. नथ या कांटा- शादी के बाद यदि कोई स्त्री नाक में नथ या कांटा नहीं पहनती तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसे भी सौभाग्य से जोड़ कर देखा जाता है.
9.Earrings:- Jewelery worn in the ears come in many beautiful shapes. Shubta it is considered a symbol of married woman. Also, stay away from various diseases of ear piercings.
कान के गहने - कान में पहने जाने वाले आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में आते हैं. विवाहित स्त्री के लिए इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है. साथ ही, कान छेदन से कई बीमारियां भी दूर रहती हैं.
10.Necklace:- The gold beads necklace worn around the neck or a married woman's husband is considered a symbol of commitment. At the time of the wedding the bride's neck bridesmaid Glsutr (granular black pearl necklace which is intertwined with gold chains) award ceremony plays. This prompted her to be married. So sore wear necklace or mangalsutra is considered auspicious.
हार- गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है. शादी के समय वधू के गले में वर गलसूत्र (काले रंग की बारीक मोतियों का हार जो सोने की चेन में गुंथा होता है) पहनाने की रस्म निभाता है. इसी से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है. इसलिए गले में हार या मंगलसूत्र पहनना शुभ माना जाता है.
11.Armlet:- This ornament of gold or silver bracelet is the same shape. It is lined entirely in arms, why is it called armlets. Married women at any festival or ceremony is considered auspicious to wear it.
बाजूबंद - कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बांहों में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबंद कहा जाता है। किसी भी त्योहार या धार्मिक आयोजन पर सुहागन स्त्रियों का इसे पहनना शुभ माना जाता है।
12.Ring:- Bride before the wedding ceremony engagement ring puts one another. It is a very ancient tradition. Ring between the ages of husband and wife is considered a symbol of love and trust. After marriage is considered a symbol of feminine Shubta be wearing it.
अंगूठी - शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। यह बहुत प्राचीन परंपरा है। अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। शादी के बाद भी स्त्री का इसे पहने रहना शुभता का प्रतीक माना जाता है।
13.Waistband:- Jewelry waistband is worn at the waist, the women wear after marriage. It appears his slim physique and also attractive. The belt symbolizes the fact that the woman is the mistress of his house. On the auspicious occasion of the house woman wearing a waistband, then it is considered a form of Lakshmi.
कमरबंद - कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक कि स्त्री अपने घर की स्वामिनी है। किसी भी शुभ अवसर पर यदि घर की स्त्री कमरबंद पहने तो उसे लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है।
14.Vermilion - Vermilion is considered a symbol of the wedding. After seven rounds of the bride and the groom fills demand means that she will play her lifetime. Therefore, the longevity of their husbands after marriage bride wish to fill with the everyday demands.
सिंदूर - सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। सात फेरों के बाद जब दूल्हा-दुल्हन की मांग भरता है तो इसका मतलब होता है कि वह उसका साथ जीवन भर निभाएगा। इसलिए विवाह के बाद स्त्री को अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ रोज मांग भरना चाहिए।
15.Nettle:- Toes in the jewelery worn like a ring or thumb called the Arsi. In addition to the jewelery three fingers except the little finger nettle wears women. Nettle woman is considered a symbol of good luck.
बिछुआ - पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। इस आभूषण के अलावा स्त्रियां छोटी उंगली को छोड़कर तीनों उंगलियों में बिछुआ पहनती है। बिछुआ स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
16-Anklets: Gungruon worn on the feet to the melodious sound of jewelery is considered very auspicious. Blessed course every woman should wear anklets in legs.
पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरुओं की सुमधुर ध्वनि को बहुत शुभ माना जाता है। हर सौभाग्यवती स्त्री को पैरों में पायल जरूर पहनना चाहिए।

Importance of Sharad Purnima

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sharad purnima
Kojagr full moon today,this method will be happy Godess Lakshmi

Sharad Purnima

Today (October 7, Tuesday) Sharad Purnima, the full moon religion Kojagr it is also stated in the scriptures.पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को भगवती महालक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरती। The Jagrthy of Lakshmi (who is awake?) Say the name of the fast Kojagr had lent. Fasting on this day to worship Goddess Lakshmi legislation. According to staff mentioned in religious texts

Mantra of godess laxmi

निशीथे वरदा लक्ष्मी: को जागर्तिति भाषिणी। जगाति भ्रमते तस्यां लोकचेष्टावलोकिनी।। तस्मै वित्तं प्रयच्छामि यो जागर्ति महीतले।।

Story behind Sharad Purnima

Indra the elephant sat on this fast and should keep fasting and worship of Mahalaxmi. Night time light a lamp and the smell of melted butter, floral etc. render all possible a hundred or more lamps ignited Dev venerable temples, gardens, basil or buildings must take down. Brahmins worship Indra bath at dawn and sweet butter-sugar mixed alms of food, textiles and gold lamps off and all wishes are fulfilled.
Srisukt this day, Lakshmi hymnal Kmlgtta making by text Brahmin, Bell should have a gift or metric by Pancmewa or pudding. Fasting Kojagr this method are very happy Mother Lakshmi and money-grains, etc. All amenities provide value-reputation.
इस व्रत में हाथी पर बैठे इंद्र और महालक्ष्मी का पूजन करके उपवास रखना चाहिए। रात के समय घी का दिया जलाकर और गंध, पुष्प आदि से पूजित एक सौ या यथाशक्ति अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर देव मंदिरों, बाग-बगीचों, तुलसी के नीचे या भवनों में रखना चाहिए। सुबह होने पर स्नानादि करके इंद्र का पूजन कर ब्राह्मणों को घी-शक्कर मिश्रित खीर का भोजन कराकर वस्त्रादि की दक्षिणा और सोने के दीपक देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ ब्राह्मण द्वारा कराकर कमलगट्टा, बेल या पंचमेवा अथवा खीर द्वारा दशांश हवन करवाना चाहिए। इस विधि से कोजागर व्रत करने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं तथा धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा आदि सभी सुख प्रदान करती हैं।
Magadha country, a gentle fold at any time, but there was a poor Brahmin. The gentleman and his wife were just as wicked Brahmin. He rose from the poverty of Brahmins used to taunt her. Even though the whole village used to condemn her husband. Unlike the conduct of the husband she had made their religion. Even in want of money to steal the day her husband was provoked. At a memorial service held in veneration by the wife of Brahmin took the bodies thrown into the well. From this act of wife sad Brahmin and went into the woods, where he found the snake girls. That was the full moon day of Ashwin month. Nagknyaon night awakening to the Brahmin asked to vow Kojagr ravishing Lakshmi. Kojagr Brahmin ritual fast delivery. Atul near this fast wealth effect was Brahmin. By the grace of Goddess Lakshmi was serene wisdom of his wife and the couple lived happily.
किसी समय मगध देश में वलित नामक एक संस्कारी, लेकिन दरिद्र ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण जितना सज्जन था उसकी पत्नी उतनी ही दुष्ट थी। वह ब्राह्मण की दरिद्रता को लेकर रोज उसे ताने देती थी। यहां तक की पूरे गांव में भी वह अपने पति की निंदा ही किया करती थी। पति के विपरीत आचरण करना ही उसने अपने धर्म बना लिया था। यहां तक कि धन की चाह में वह रोज अपने पति को चोरी करने के लिए उकसाया करती थी। एक बार श्राद्ध के समय ब्राह्मण की पत्नी ने पूजन में रखे सभी पिण्डों को उठाकर कुएं में फेंक दिया। पत्नी की इस हरकत से दु:खी होकर ब्राह्मण जंगल में चला गया, जहां उसे नाग कन्याएं मिलीं। उस दिन आश्विन मास की पूर्णिमा थी। नागकन्याओं ने ब्राह्मण को रात्रि जागरण कर लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला कोजागर व्रत करने को कहा। ब्राह्मण ने विधि-विधान पूर्वक कोजागर व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण के पास अतुल धन-सम्पत्ति हो गई। भगवती लक्ष्मी की कृपा से उसकी पत्नी की बुद्धि भी निर्मल हो गई और वे दंपत्ति सुखपूर्वक रहने लगे।

Ganesha chaturthi 2014

ganesh chaturthi
ganesh visarjan
Ganesha chaturthi 2014

Ganesha chaturthi 2014

Anant Chaturdashi is celebrated on the date of the bright fortnight in the month of bhadrapada (this time on September 8, Monday) is celebrated the feast. 10-day Ganesh festival ends on the same day and in the homes of Lord Ganesh idols are immersed in water. Classically recognized that the statue be installed, it must be immersion. It may not be immersion in the river or reservoir. Yes, immersion in water should be the same. Best way to clean the container and pure water in your home is the immersion of the idol. Lord Ganesh is worshiped before immersion too. The method is as under:

భాద్రపద మాసంలో ప్రకాశవంతమయిన పక్షంలోని చతుర్దశి అనంత్ చతుర్దశి తేదీ (సెప్టెంబర్ 8 న ఈ సమయంలో, సోమవారం) తర్వాత విందు జరుపుకుంటారు. గణేష్ ఉత్సవం అదే రోజున మరియు వినాయకుని విగ్రహాలను ఇళ్లలో ముగుస్తుంది 10 రోజుల నీటిలో నిమజ్జనం చేస్తారు. సాంప్రదాయికంగా విగ్రహం ఇన్స్టాల్ చేయాలి అని, అది ఇమ్మర్షన్ ఉండాలి గుర్తించింది.

ఇది నది లేదా జలాశయంలో ఇమ్మర్షన్ కాకపోవచ్చు. అవును, నీటిలో నిమజ్జనం అదే ఉండాలి. మీ హోమ్ లో కంటైనర్ మరియు స్వచ్ఛమైన నీరు శుభ్రం చేయడానికి ఉత్తమ మార్గం విగ్రహం ముంచడం. వినాయకుని చాలా ఇమ్మర్షన్ ముందు పూజిస్తారు.

Bhadrapada महिन्यात उज्ज्वल पंधरवड्यात च्या चतुर्दशी अनंत चतुर्दशी तारीख (8 सप्टेंबर रोजी या वेळी, सोमवार) मेजवानी साजरा केला जातो. गणेश उत्सव त्याच दिवशी आणि गणपतीची मूर्ती घरे मध्ये संपेल 10 दिवसांच्या पाण्यात immersed आहेत. Classically पुतळा स्थापित केले की, तो बुडवणे असणे आवश्यक आहे ओळखले.

नदी किंवा साठ्याची बुडवणे असू शकत नाही. होय, पाण्यात बुडवणे समान असावी.उत्तम उपाय यह है कि अपने घर में ही साफ पात्र और शुद्ध जल में प्रतिमा का विसर्जन हो। गणपतीची खूप बुडवणे आधी केली जाते.

ಭಾದ್ರಪದ ಮಾಸದಲ್ಲಿ ಪ್ರಕಾಶಮಾನವಾದ ಹದಿನೈದು ಚತುರ್ದಶಿ ಅನಂತ್ ಚತುರ್ದಶಿಯಂದು ದಿನಾಂಕ (ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 8 ರಂದು ಈ ಬಾರಿ, ಸೋಮವಾರ) ಹಬ್ಬದ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ. ಗಣೇಶ್ ಹಬ್ಬ ಒಂದೇ ದಿನ ಮತ್ತು ಗಣೇಶ ವಿಗ್ರಹಗಳನ್ನು ಮನೆಗಳಲ್ಲಿ ಕೊನೆಗೊಳ್ಳುತ್ತದೆ 10 ದಿನ ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಮುಳುಗಿದ್ದರೆ. ಶಾಸ್ತ್ರೀಯವಾಗಿ ಪ್ರತಿಮೆ ಅಳವಡಿಸಬಹುದಾಗಿದೆ ಎಂದು, ಇದು ಇಮ್ಮರ್ಶನ್ ಇರಬೇಕು ಮಾನ್ಯತೆ.

ಇದು ನದಿ ಅಥವಾ ಜಲಾಶಯ ಅದ್ದುವುದನ್ನು ಇರಬಹುದು. ಹೌದು, ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಅದ್ದುವುದನ್ನು ಅದೇ ಇರಬೇಕು. ನಿಮ್ಮ ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಧಾರಕ ಮತ್ತು ಶುದ್ಧ ನೀರನ್ನು ಸ್ವಚ್ಛಗೊಳಿಸಲು ಅತ್ಯುತ್ತಮ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ವಿಗ್ರಹದ ಮುಳುಗಿಸುವುದು. ಗಣೇಶ ತುಂಬಾ ಇಮ್ಮರ್ಶನ್ ಮೊದಲು ಪೂಜಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी (इस बार 8 सितंबर, सोमवार) का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन 10 दिवसीय गणेशोत्सव का समापन होता है और घरों में स्थापित भगवान श्रीगणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि जो प्रतिमा स्थापित की जाए, उसका विसर्जन होना चाहिए।

जरूरी नहीं कि यह विसर्जन नदी या जलाशय में ही हो। हां, विसर्जन जल में ही होना चाहिए। उत्तम उपाय यह है कि अपने घर में ही साफ पात्र और शुद्ध जल में प्रतिमा का विसर्जन हो। विसर्जन के पूर्व भगवान श्रीगणेश का पूजन भी किया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है-


How to celebrate Ganesha chaturthi 2014

After pre-installed Ganesh idol immersion Sodsopchar liturgical chant prayers to the resolution. Must offer vermilion at the statue of Ganesha. Speaking mantra must offer 21 lawn party. Find Ldduon enjoyment of 2 1. 5 of these sweet and 5 near the statue must offer to provide Brahmin. The remaining distribute sweets as offerings.

विसर्जन से पूर्व स्थापित गणेश प्रतिमा का संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 2 1लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण को प्रदान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें। पूजन के समय यह मंत्र बोलें-


mantras of ganesh

Om Gam Gnptye Namah,ऊँ गं गणपतये नम: ऊँ गणाधिपतयै नम:
ऊँ उमापुत्राय नम:
ऊँ विघ्ननाशनाय नम:
ऊँ विनायकाय नम:
ऊँ ईशपुत्राय नम:
ऊँ सर्वसिद्धप्रदाय नम:
ऊँ एकदन्ताय नम:
ऊँ इभवक्त्राय नम:
ऊँ मूषकवाहनाय नम:
ऊँ कुमारगुरवे नम:
इसके बाद श्रीगणेश की आरती उतारें और घर में ही साफ पात्र और शुद्ध जल में प्रतिमा का विसर्जन कर दें और यह मंत्र बोलें-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
अब यह जल पवित्र वृक्षों की जड़ों में अर्पित कर दें। इससे गणेशजी की कृपा सदा के लिए आपके परिवार पर बनी रहेगी।

Buddhism,Buddha Religion,About Buddhism,Principles of Buddhism,Followers of Buddhism,Gautama Buddha,Siddhartha

Buddhism

Like all great teachers of ancient times ,Gautama ,the Buddha ,also taught orally ,usually in the form of sermons or dialogues.The pali cannon (also called Tripitaka) was composed long after his death and is regarded the authentic teachings of the Buddha as reported by his most ardent disciples.Buddha was more concerned about the alleviation of suffering and less about abstruse philosophical matters.His analysis of the problem of suffering and his solution is described herewith and is popularly called the Four Noble Truths.

His four Noble Truths(Chatvari Arya Satyani)

  • 1.The world is full of sorrows(Dukhha).
  • 2.The cause of sorrow is desire (trishna).
  • 3.If desires are conquered,all sorrows can be removed.
  • 4.The only way this can be done is by following the eight-fold path.

Eight-fold Path(Asthangamarga)

  • 1.Right Vision
  • 2.Right Aim
  • 3.Right Speech
  • 4.Right Action
  • 5.Right Effort
  • 6.Right Awareness
  • 7.Right Livelihood
  • 8.Right Medition

According to Buddha ,the one who follows the path,considered the middle path(Madhayama Pratipad) ,would attain salvation irrespective of his social background.The Virtous path suggested by Buddha is a code of practical ethics that has a rational outlook.Buddhism,therefore ,was more of a social than religious revolution.

What is Nirvana?

Nirvana literally means 'blowing out' or extinction of desire (trisha) and the consequent cessation of suffering.It is deliverance from the cycle of birth and death,i.e,freedom from rebirth.

Madhyamika School

Though there are popular schools like Mahayana,Hinayana,Sautarnitika and the Vaibhasika,from the philosophical point of view,the Madhyamika school propounded by Nagarjuna,deserves special mention. Philosophies,as per his analysis ,develop because of man's unquenchable thirst for understanding the unknown.Each philosophy has its own interpretation of reality,and develops theories and concepts to describe their understanding.The philosophers become so attached to their dogmatic views that they cease to understand that philosophies are only interpretations, and not reality itself.Nagarjuna insisted that it is not possible to understand the relativity of all such view points.So,in true sprit Nagarjuna propound any doctorines,theories or views of his own.He even went to the extent of exhorting men to be free from Buddha and his teachings and to not cling to them.Nagarjuna says that all of us are in the state of Nirvana ,and there is no difference between our ordinary existence and Nirvana ,except from the view point of the person.When someone has freed himself of illusions,ignorence,dogmatism, and attachments,the ordinary existence become nirvana.He does not deny the existence of nirvana,but warns men against being attached to the concept of nirvana.It is believed that the clearest expression of Buddha's teachings has come through Nagarjuna.This school is considered to be the source of insipiration for Zen Buddhism.

All schools of Buddhism attach very high importance to meditation.Meditation is the corner stone of buddhist practice and different techniques have evolved over time.It is only through meditation,and inner exploration that one is able to attain Nirvana.

JAINISM,Jain Religion,About Jain Religion,History of Jain Religion,Principles of Jain Religion,Followers of Jain Religion

JAINISM

Vardhaman,who later came to be known as Mahavira(great hero or jina,which means conqueror),was the last and 24th Tirthankara.He is generally accepted to be the founder of Jainisim.His philosophy may have become popular as a reaction to the moral bankruptcy that existed through Hindu and Brahmanism.

In Jain philosophy ,realty is divided into two substances:
1.Animate substances(Jivas and souls).
2.Inanimate substances(Ajivas and non-souls).
It is dualistic ,but also recognises that the essential character of the substances is permanence,and the changes which we see are the accidental characterstics.Soul is both changing as well as permanent,with its permanent unchanging essential characterstic as conciousness and accidental changing qualities as pain and pleasure.This view rejects the permanence of Bharaman as well as pure change of Buddhism.God as a judge,creator or sustainer is rejected and the law of karma is fully autonomous and impersonal in its operation.The law of karma says that all phenomena are the result of some causes that happend in the past.This law can be roughly defined as the law of casulty.Whatever a person goes through his life is due to his actions in the past lives and he will reap the fruits of his actions in the next life depending on his actions in his life.But Jainism,s rejection of God does not entail the rejection of the prayers.Jains do pray to the Tirthankaras in order to receive guidence and inspiration ,and not for mercy forgiveness or confession of guilt ,as in the case of many theistic religions.

The five cardinal principles of Jainism are:-

  • 1.Ahimsa(Non-violence)
  • 2.Satya(speaking the truth)
  • 3.Asteya(no stealing)
  • 4.Aparigraha(no property)
  • 5.Brahmacharya(continence)

Only the last principle was added by Mahavira,the other being the teachings of his predecessors. The five principles when observed by a monk strictly are called Mahavarats ,and when observed by a lay follower in a less rigorous manner are called Anuvarats.
The three gems of Jainisms are called Ratnatraya:-
1.Right Action
2.Right Liberation

Krishna Janmashtami ,Puja Muhurat of Krishna Janmashtami,Vaishnava Krishna Janmashtami,Krishna Janmashtami celebration in Iskon Temple ,Krishnashtami, Gokulashtami, Ashtami Rohini, Srikrishna Jayanti ,Sree Jayanthi.


Krishna Janmashtami 2014

5241th Birth Anniversary of Lord Krishna
Nishita Puja Time = 24:03+ to 24:47+
Duration = 0 Hours 44 Mins
Mid Night Moment = 24:25+
On 18th, Parana Time = After 06:06
On Parana Day Ashtami Tithi End Time = 06:06
Janmashtami without Rohini Nakshatra
*Vaishnava Krishna Janmashtami falls on 18/Aug/2014
For Vaishnava Janmashtami Next Day Parana Time = 05:56 (After Sunrise)
On Parana Day Ashtami got over before Sunrise
Janmashtami without Rohini Nakshatra
Ashtami Tithi Begins = 05:55 on 17/Aug/2014
Ashtami Tithi Ends = 06:06 on 18/Aug/2014

Celebration of Krishna Janmashtami

Shri Krishna Janmashtami is the birth date of shri krishna ,this auspicious day is celebrating on Asthmi thithi according to Hindu calender.On this occasion the temples are decorated with beautiful flowers and lightening at the midnight.Peoples gathers in the temples with their families and chants the name of god till mid night when the birthday celebration of shri krishna begins.Krishna Janmashtami is an Hindu festival which is celebrated every year not only in India but also in the every corner of the world.


The Krishna Janmashtami of mathura,vrindavan and dwarka where the shri krishna avatar of lord Vishnu took birth .Peoples gather there and witnessed of that auspicious moment of shri krishna birth.

Fasting Rules of Krishna Janmashtami

No grains should be consumed during Janmashtami fasting until the fast is broken on next day after Sunrise. All rules followed during Ekadashi fasting should be followed during Janmashtami fasting also.
Parana which means breaking the fast should be done at an appropriate time. For Krishna Janmashtami fasting, Parana is done on next day after Sunrise when Ashtami Tithi and Rohini Nakshatra are over. If Ashtami Tithi and Rohini Nakshatra don't get over before Sunset then fast can be broken during day time when either Ashtami Tithi or Rohini Nakshatra is over. When neither Ashtami Tithi nor Rohini Nakshatra is over before Sunset or even Hindu Midnight (also known as Nishita Time) one should wait to get them over before breaking the fast.
Depending on end timing of Ashtami Tithi and Rohini Nakshatra fasting on Krishna Janmashtami might continue for two complete days. Devotees who are not able to follow two days fasting might break the fast on next day after Sunrise. It has been suggested by Hindu religious text Dharmasindhu.

Smarta followers who understand the difference between Smarta and Vaishnava sectarian don't follow ISKCON date to observe Janmashtami fasting. Unfortunately ISKCON date to observe Janmashtami is unanimously followed in Braj region and most common people who just follow the buzz observe it on the date followed by the ISKCON.
People who are not the followers of Vaishnavism are followers of Smartism. Hindu religious texts like Dharmasindhu and Nirnaysindhu have well defined rules to decide Janmashtami day and those rules should be followed to decide Janmashtami day if one is not the follower of Vaishnava Sampradaya. Ekadashi fasting is one of the good examples to understand this difference. Rules to observe Ekadashis' fasting are also different for Smarta and Vaishnava communities. However there is more awareness about different Ekadashi rules followed by Vaishnava sectarian. Not only Ekadashis, Vaishnava fasting day for Janmashtami and Rama Navami might be one day later than Smarta fasting day.
The followers of Vaishnavism give preference to Ashtami Tithi and Rohini Nakshatra. The followers of Vaishnavism never observe Janmashtami on Saptami Tithi. Janmashtami day according to Vaishnava rules always fall on Ashtami or Navami Tithi on Hindu calendar.
However rules followed by Smartism to decide Janmashtami day are more complex. The preference is given to Nishita or Hindu midnight. The preference is given to the day, either Saptami Tithi or Ashtami Tithi, when Ashtami Tithi prevails during Nishita and further rules are added to include Rohini Nakshatra. The final consideration is given to the day which has the most auspicious combination of Ashtami Tithi and Rohini Nakshatra during Nishita time. Janmashtami day according to Smarta rules always fall on Saptami or Ashtami Tithi on Hindu calendar.
This page list Janmashtami according to Smarta Sampradaya and make a footer note if it doesn't coincide with Janmashtami day observed by the ISKCON.
Krishna Janmashtami is also known as Krishnashtami, Gokulashtami, Ashtami Rohini, Srikrishna Jayanti and Sree Jayanthi.

Gupt Navratri and its Tantric Facts

Gupt navratri-hindu festival

The Gupta Navratri is celebrated in the months of Magh and one in the month of Ashadh are also dedicated to Maa Durga and for accomplishing Tantra practice.This year the festival of Gupt Navratri began on June 29 and will go up to July 6. Gupt Navratri of Ashadh mas is also dedicated to nine forms of Devi Shakti. It is also a nine-night festival for pleasing Goddess Durga. But you may not see the same custom, rituals, and grand celebration during Ashadh Navratri like Sharad Navratri, as in Sharad Navratri Dandiya, Garaba, nine-day fast, Vijya Dashmi and other big rituals are followed. In Gupt Navratri you can only join holy worship of Maa Durga.

The spiritual practices (Sadhnaye) of Gupt Navratri are performed in a secretive place like a crematorium. This is because only crematorium is such a place where the answers of all tantrik practices are received. These special crematoriums’ where Tantrik practices are performed include Tarapeeth Crematorium in West Bengal; Kamakhya Peeth in Assam; Triyambakeshwar Crematorium in Nasik and Chakrateerth in Ujjain.
Rituals in Gupt Navratri differ from region to region. Ashadh Navratri is religiously celebrated in all parts of India, but great significance of this festival can be noted in South India. This time is considered very blessed and the time to please Goddess Shakti and get her immense grace in your life.

Women devotees were seen offering traditional sindoor, panchabaraner guri (powders of five different colours; turmeric, rice, kusum flowers, burnt coconut fibre and bel leaves), and decorative stuff like chandmala, sindur, alta, sankha, pola noa, Bengali topor (headpiece for the groom) and agarbattis, to the idol of their deity.

Tarapeeth
This temple is a small town in the district of West Bengal. Here is the temple of Goddess Tara. According to mythology, Goddess Sati's eye fell here. This place is therefore called as Nayan Tara.
Kamakhya Peeth
It is located in Guwahati in Assam. This temple is made on a mountain cliff. This temple has tantrik significance. This temple has Goddess’s yoni khand here. This place is like heaven for tantrik gurus.
Triyambakeshwar
Triyambakeshwar Jyotirling is located in Maharashtra’s Nasik. This place has significance of tantrik pujas.
Chakrateerth
Mahakaleshhwar temple is one of the 12 Jyotirlingas. It is in Ujjain district of Madhya Pradesh. The crematorium near this temple sees a great rush of tantrik gurus coming from far away.This crematorium is known as Chakrateerth.

SIDDHSAMPUT MANTRAS OF SRI DURGASAPTASHATl & SRIMAD BHAGAVAT

: 1. Mantra for wealth
“Durge Smrita Harasi Bhitimshesh Jantoh Swasthaih Smritamati Mateev Shubhaam Dadasi Daridray Duhkh Bhayaharini ka Twadanya Sarvopakarkaranay Sadadrachitta.”
2. Mantra for welfare
“Sarv Mangala Mangalye Shive Sarvarth Sadhike Sharanye Trayambke Gouri Narayani Namostute.”
3. Mantra for power
“Srishtisthiti Vinashaanam Shaktibhute Sanatani Gunaashraye Gunamaye Narayani Namostute.”
4. Mantra for overcoming problems
“Sharanagat Deenart Paritranaparayane Sarvsyartihare Devi, Narayani Namostute.”
5. Mantra for overcoming fear
“Sarvaswarupe Sarveshe Sarvashakti Samanvite Bhaye Bhyastrahi No Devi! Durge Devi Namostute.”
6. Mantra for getting protection
“Shulen Pahi No devi! Pahi Khadagen Chambike Ghanta Swanen Nah Pahi, Chapajyanihswanen Cha.”
7. Mantra for health and good luck

“Dehi Saubhagyamaarogyam Dehi Me Paramam Sukham Rupam Dehi Jayam Dehi, Yasho Dehi Dwikho Jahi.”
8. Mantra for the eradication of an epidemic
“Jayanti Mangala Kali, Bhadrakali Kapalini Durga Kshama Shiva Dhatri Swaha Swadha Namoastute Te.”
9. Mantra for getting suitable wife
“Patni Manormam Dehi, Manovrittanusarinim Tarineem Durgsansarsaagarasya Kulodbhavaam.”
10. Mantra for getting suitable husband
“Katyayani Mahamaye Mahayoginyadheswari Nandogopa sutam Devi Patim Me Kurute Namah.”

Ramzan-the month of peace and harmony


Ramzan-the month of peace and harmony Ramdhan is an Arabic word in Persian: رَمَضان‎ Ramazān; Urdu: رَمْضان‎ Ramzān; Turkish: Ramazan; is the ninth month of the Islamic calendar.It is the month for fasting for 30 days, no food, no drink from early morning to sun set time. The month is for purifying one self by doing good work and giving more charity for the poor and forgive others and make prayer for peace and harmony on the earth.
Muslim devotees eat their Iftar (evening breaking fast) meal on the first day of the holy month of Ramzan at the Jama Masjid in Delhi. With the sighting of the moon on June 29, the Islamic month of Ramadan began on June 30.

Importance of Ramzan

According to quran:-

The month of Ramadan is that in which was revealed the Quran; a guidance for mankind, and clear proofs of the guidance, and the criterion (of right and wrong). And whosoever of you is present, let him fast the month, and whosoever of you is sick or on a journey, a number of other days. Allah desires for you ease; He desires not hardship for you; and that you should complete the period, and that you should magnify Allah for having guided you, and that perhaps you may be thankful.

Thus, according to the Quran, Muhammad first received revelations in the lunar month of Ramadan. Therefore, the month of Ramadan is considered to be the most sacred month of the Islamic calendar, the recording of which began with the Hijra.
The month of Ramzan begins with the With the sighting of the moon . The month lasts 29–30 days based on the visual sightings of the crescent moon, according to numerous biographical accounts compiled in the hadiths.
The predominant practice in Ramadan is fasting from dawn to sunset. The pre-dawn meal before the fast is called the suhoor, while the meal at sunset that breaks the fast is the iftar. Considering the high diversity of the global Muslim population, it is impossible to describe typical suhoor or iftar meals.Muslims also engage in increased prayer and charity during Ramadan.

Ramzan in India

India's Eid-ul-Fitar festival starts on the first day of the month of Shawwal (or Shawwl). Many Muslims attend communal prayers and listen to a sermon at Eid al-Fitr. Those have not given the charity known as zakat al-fitr during Ramadan do so during Eid al-Fitr. Zakat al-fitr consisting of a quantity of food, such as barley, dates, raisins or wheat flour, or its monetary equivalent given to poor people in the community. It is common for Islamic communities organize communal meals. Many Muslims in India also wear new clothes, visit family members, exchange Eid cards and give presents of sweets and small toys to children. Muslim devotees eat their Iftar (evening breaking fast) meal on the first day of the holy month of Ramzan at the Masjid. With the sighting of the moon on June 29, the Islamic month of Ramzan began on June 30. Devotees after having their Iftar meal on the first day of the holy month of Ramzan in Masjid. This holy month is considered by Muslims as highly auspicious and is dedicated to prayers.
Muslims devotees break their fast on the first day of Ramzan at Jama Masjid. During this month the world's estimated 1.6 billion Muslims will abstain from food, drink and other pleasures from sunrise to sunset. Muslim devotees stand next to an eatery stall after their Iftar meal on the first day of Ramzan in Ahmedabad. Ramzan is the ninth and holiest month of the Islamic, lunar calendar.

Health Issues related to Ramzan

It has been suggested that fasting during Ramadan has numerous health benefits, including: improved brain function and alertness due to greater brain cell production;greatly reduced stress levels due to a reduction in cortisol;a reduction of cholesterol;a reduction of blood glucose HDL cholesterol levels;increases in LDL cholesterol;Weight loss due to the use of fat for energy while preserving muscle;decrease of waist circumference; decrease of body mass index; decrease of blood sugar; decrease of mean arterial pressure; better control of diabetes; reduced blood pressure;and a detoxification process.

In this month of Ramzan muslim peoples gather together at their home by taking leave from their jobs to enjoying this month with their family members.Through out the day peoples remain in their homes and at the evening with the end of sunset peoples starts gathering in markets,and share sweets and food with each other.This month is really a month of brother-hood.
HAPPY RAMZAN.........

Lord Jagannath's Rath Yatra


Daily Worship Time-table:-
05 A.M. : Dwara Pitha & Mangalal Alati
06 A.M. : Mailam
09 A.M. : Gopala Ballava Puja
11 A.M. : Madhynha Dhupa

Lord Jagannath's Rath Yatra Puri

Rath Yatra or chariot festival is celebrated by Hindus on the second day of Sukla Paksha (waxing cycle of moon) in the month of Ashadh.The festival is held every year in the month of June-July .This festival is popularly known as Ratha Yatra, Gundicha Yatra and also Ghosha Yatra. On the Car Festival day, the deities are taken out of the temple and placed in their respective chariots, kept near the Singhadwar. The deities are carried to the chariots in a traditional ceremonial manner-first Sudarshana, followed by Balabhadra, Subhadra and Jagannath. Balabhadra and Jagannath are made to swing forward and backward in a manner called 'Pahandi'.
The chariot of Lord Jagannath is known as Nandighosha. It has 16 (sixteen). wheels and the colour of the fabrics that cover the roof of the chariot are red and yellow. The chariot of Lord Balabhadra is known as Taladhwaja. It has 14 (fourteen) wheels and the colours of the fabrics are red and green. Subhadra's chariot 'Devadalana' has 12 (twelve) wheels and fabrics are red and black. Sudarshan is seated by the side of Subhadra in her chariot. Madanmohan, a representative deity of Jagannath sits in the chariot of Lord Jagannath. So also two other small idols -Rama and Krishna take their seats in the chariot of Balabhadra. These small idols are made of metal. Thus actually seven deities namely Jagannath, Balabhadra, Subhadra, Sudarshana, Madanmohan, Rama and Krishna are seated on three chariots and moved to a temple known as 'Gundicha Ghar' which is at a distance of about 3 kms from Jagannath Temple. The chariot of Balabhadra is dragged first, followed by those of Subhadra and Jagannath.
'Snana Pumima’ marks the beginning of this festival. On this day the three deities - Lord Jagannath, Lord Balabhadra and Devi Subhadra take prolonged bath on an open platform known as ‘Snana Bedi’, Then they retire for 15 days popularly called the period of ‘Anabasara’ and remain in isolation, because the idols are supposed to be down with 'fever'.
After 15 days of isolation, the Gods come out of the temple in a colourful procession, with the accompanying of cymbals, drums and music, to board their respective chariots and thereafter begins the journey known as “Rath Yatra’.
The king of Puri himself comes to the chariots, and with a broom, having a silver handle, performs the "Chhera Panhara" (the sweeping of chariots), only after which the journey begins.
On the first day if any chariot cannot reach the Gundicha Ghar, it is dragged on the next day. On the ninth day i.e. the Return Car Festival day, the deities are brought to the Singhadwar area of the Jagannath Temple. An important ritual performed, on the 5th day (starting from and including the day of Car Festival) is known as 'Hera Panchami', when goddess Laxmi proceeds to Gundicha Ghar to see Lord Jagannath. Nine days later, the idols return to the main Jagannath temple in a similar procession known as "Bahuda Yatra" (return journey) or the return car festival. In the evening of the lOth day (i.e. the 11th day of the bright fortnight of Asadha) the deities are adorned with gold ornaments and dressed gorgeously in their respective chatiots parked in the Simhadwar area. On the same day another ritual called 'Hari Sayan Ekadasi' is performed. On the following day i.e. the 12th day of the bright fortnight, important ceremony known as' Adharapana Bhog' is performed. A sweet drink is offered to the deities. On the evening of the following day, the deities are taken to the temple in a traditional procession amidst gathering of thousands of devotees.

Beliefs behind Rath-Yatra


lt is believed that those who take part in the Car Festival earn their passage to the Heaven as Lord Jagannath, Lord of the Universe, comes out of His sanctum sanctorum to give 'darshan' (audience) to all devotees belonging to all sects and communities.
Temples in Puri urya Yantra temple,
 Ksetrapala temple,
 Nrsimha temple,
 Jalakrida Mandapa, (Note- All ceremonial
baths of the deities are held here.),
 Jogesvara temple,
aksigopala temple,
 Kanci Ganesa temple,
 Khira Choragopinatha temple,
 Panchasakti temple,
 Nila Madhava temple,
 Laksminarayana temple,
 Navagraha temple,
 Sarya Candra temple,
 Goplnatha and Ramcandra temple,
 Patalesvara temple,
 Padapadma temple,
 Ramacandra temple,
 Caitanya temple,
 Hanuman temple,
 Caturdhama temple,(Note - This Caturdhama temple houses the four deities worshipped in the four dhamas of India and the images are in a miniature form.)Apart from these temples, there are some more important places in the temple complex, two of which deserve special mention.
(a) Koili Vaikuntha is located in between the outer and the inner compound wall of the north -western corner. It is traditionally believed to be the place where Krisna was cremated after he was killed by Jara Savara. There fore when the Nava Kalevara ceremony takes place, new images are fashioned and the old ones are buried here only.
(b) The Niladri Vihar is a small museum where we can see, with the help of colorfully painted models, the legendary emergence of Jagannatha as the presiding deity of the temple.

Amavasya and Its Significance

Amavasya and Its Significance

According to Hindusm New Moon day is said to be as 'Amavasya'.It will come once in a month,according to hindusm their are many spritual bliefs and significance of Amavasya.Many festivals, the most famous being Diwali (the festival of lights), are observed on Amavasya.Many Hindus fast on Amavasya.This day is also devoted to their forefather's ,on this day peoples belongs to hindusm offer pray and food to them,and pray God for their soul calmness.Pitra and donations are done for the sake of happiness of the departed souls of the family.

Somavati Amavasya

An Amavasya falling on a Monday has a special significance in Hindu Religion. It is believed that a fast on this particular Amavasys would ward off widow-hood in women and to ensure Progeny. It is also believed that all desires could be fulfilled if one fasts on such an Amavasya.

Festivals on Amvasya

Their are many festivals according to puranas in hindusm fallen on this auspicious day of Amvasya.The most important festival Deepawali is also celebrated on day of Kartik Amvasya.As deepawali is the biggest festival of hindus and festival of lighting.Somvati Amvasya and sani jayanti is also fallen on the day of Amvasya.According to puranas their is great beliefs behind this festivals.
Month Amavasya Date Festivals
Paush 1 January (Wednesday) Paush Amavasya
Magha 30 January (Thursday) Mauni Amavasya
Phalguna 1 March (Saturday) Shani Amavasya
Chaitra 30 March (Sunday) Chaitra Amavasya
Vaishakha 29 April (Tuesday) Vaishakha Amavasya
Jyeshtha 28 May (Wednesday) Shani Jayanti
Ashadha 27 June (Friday) Ashadha Amavasya
Shravana 26 July (Saturday) Shani Amavasya / Hariyali Amavasya
Bhadrapada 25 August (Monday) Somvati Amavasya
Ashwin 23 September (Tuesday) Mahalaya Amavasya / Sarvapitri Amavasya
Kartik 23 October (Thursday) Lakshmi Puja
Margashirsha 22 November (Saturday) Shani Amavasya
Paush 21 December (Sunday) Paush Amavasya

Guru Purnima

Guru Purnima

The word Guru is derived from two words, 'Gu' and 'Ru'. The Sanskrit root "Gu" means darkness or ignorance. "Ru" denotes the remover of that darkness. Therefore one who removes darkness of our ignorance is a Guru. Gurus are believed by many to be the most necessary part of lives. On this day, disciples offer puja (worship) or pay respect to their Guru (Spiritual Guide). It falls on the day of full moon, Purnima, in the month of Ashadh (June–July) of the Shaka Samvat, Indian national calendar and Hindu calendar.According to Hindu Religion Guru is equated as a supreme power.The Guru is the only mediator between the individual and the Immortal(God).Guru purnima(Full moon day)is devoted to Guru.

The full moon day in the Hindu month of Ashad (July-August) is observed as the auspicious day of Guru Purnima, a day sacred to the memory of the great sage Vyasa. All Hindus are indebted to this ancient saint who edited the four Vedas, wrote the 18 Puranas, the Mahabharata and the Srimad Bhagavata. Vyasa even taught Dattatreya, who is regarded as the Guru of Gurus.

Significance of Guru Purnima

On this auspicious day all devotees worship their spiritual as well as academic guru.On this day Guru pooja is performed.It is said in puranas of hindus that the Guru Principle is a thousand times more active on the day of Gurupournima than on any other day.

Purnima (Full Moon Day)

Purnima day Months Date
Paush Purnima Paush month 16 January
Magha Purnima Magha Month 14 February
Phalguna Purnima Phalguna month 16 march
Chaitra Purnima Chaitra month 15 April
Vaishakha Purnima Vaishakha Month 14 may
Jyaishta Purnima Jyaishta Month 13 june
Ashadha/Guru Purnima Ashadha Month 12 July
Shravana Purnima Shravana Month 10 August
Bhadrapada Purnima Bhadrapada Month 9th September
Ashwin Purnima Ashwin month 8th october
Kartik Purnima Kartik Month 06 November
Margashirsha Purnima Margashirsha Month 06 December

Nirjala/Bheem Ekadashi

निर्जला एकादशी

युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।।
तब वेदव्यासजी कहने लगे: दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्य कर्म ।समाप्त होने के पश्चात् पहलेब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।।
यह सुनकर भीमसेन बोले: परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यहीकहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।।
भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।।
भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ? मेरे उदर में वृकनामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथाजिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।।
व्यासजी ने कहा: भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डालसकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्णहोता है । तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । वर्षभर में जितनीएकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानवसबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।’।
एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करनेवालेऔर मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो । स्त्री हो या पुरुष, यदिउसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक-एकप्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण काकथन है । निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डालके समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।।
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे । जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं ।।
कुन्तीनन्दन ! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करनाचाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है । पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनकेसंतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं । जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौपीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है । निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठतथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाताहै । चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि : ‘मैं भगवानकेशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’ द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए । गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र सेविधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे :।
देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥।
‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये ।’।
भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए । उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णुके समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है । तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त होआनंदमय पद को प्राप्त होता है ।।
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया । तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई ।।

Nirjala Ekadashi

Yudhishthira said, “O Lord! Please describe the Ekadashi that falls in the bright fortnight of the month of Jyeshtha.” Lord Krishna said, “O King! Righteousness personified Vyasji, the son of Satyawati, will enlighten you about this Ekadashi, for he is well versed in the philosophical essence of all the scriptures and is a master of the Vedas and Vedangas.”।
Then Vedavyasji said, “One should not take food on both Ekadashi days of a month. On Dvadashi, one should sanctify oneself by taking a bath and then worship Lord Vishnu with flowers. Then one should complete one’s daily routine and take food, but only after offering food to Brahmins first. O King! Even during the impurity period caused by a birth or death in the family, one should desist from taking meals on the day of Ekadashi.”।
Upon hearing these words Bhimasena said, “Please listen to me O Supremely wise Grandsire! King Yudhishthira, revered mother Kunti, Draupadi, Arjuna, Nakula and Sahadeva never take meals on the day of Ekadashi. They also exhort me to abstain from taking food but I tell them that I cannot control my hunger.”।
On hearing the words of Bhimasena Vyasji said, “If you desire to attain heaven, and consider hell to be corrupted then you should not eat on the Ekadashi of either fortnight.”।
Bhimasena said, “Grandsire! I am telling you the truth. The fact is that I am unable to observe even a partial fast by taking only a single meal in a day. Pray how can I observe a complete fast? There is a fire in my stomach called ‘Vrika’, which cannot be pacified unless I eat to my heart’s content. Therefore, O Great among sages! I can observe only one fast in a year. Tell me about one such vrata that will entitle me to heaven and ensure my well-being. I promise to observe that fast meticulously. Vyasji said, “Bhima! In the month of Jyeshtha, when the Sun is in the Taurus or Gemini constellation observe the vrata of the Ekadashi falling in the bright fortnight without even drinking water. You can take water into the mouth only for rinsing or doing achamana. Any other intake of water should not be resorted to for that breaks the fast. From sunrise on Ekadashi to sunrise of the next day if one does not take water, only then the observance of the vrata is considered to be complete. On the Dvadashi day, after taking a bath, one should donate water and gold to Brahmins in the prescribed manner. Thus having completed all concerning rituals, the self-restrained man should take food with the Brahmins. Undoubtedly indeed, the merits one attains by observing the vrata of Nirjala Ekadashi is equivalent to the merits attained by observing fasts on all Ekadashis of the year. Lord Keshava, who holds the conch, disk and club, had told me, “If a man takes refuge in me renouncing all else, and also observes a fast on Ekadashis, he is delivered from all sins.”।
One who observes the vrata of Ekadashi does not have to face the dark-complexioned, gigantic and fierce messengers of Lord Yama, who hold staffs and nooses. Instead, this devout Vaishanva is finally escorted to the abode of Lord Vishnu by His yellow-clad, Sudarshana chakra-wielding gentle messengers who move with the speed of mind. Therefore, by all means, observe a complete fast and worship Lord Vishnu on the day of Nirjala Ekadashi. Men of women, even if they have incurred mountainous sins, are absolved from their evil deeds by observing the vrata of Nirjala Ekadashi. One who observes the vow of not taking water on that day, is entitled to great merits. It is said that such a person attains merits equivalent to donating tens of millions of gold coins for every three-hour period of the day. Whatever virtuous deeds such as holy bath, charity, jap, homa, etc. one performs on this day bestows imperishable merits upon him. This has been declared by Lord Krishna Himself. One who meticulously observes a fast on Nirjala Ekadashi in the prescribed manner attains the position of Lord Vishnu’s devotee. He who takes food on an Ekadashi day, in effect, eats sin. He is like a chandal in this world and is relegated to a lower world after death.।
Those who observe a fast and engage in charities on the Ekadashi falling in the bright fortnight of Jyeshtha, attain the Supreme state of salvation. Even those sinners, such as the killer of a Brahmin, a drunkard, a thief or one who opposes the Guru, will be delivered from all sins if they observe a fast on this Ekadashi day.।
O Son of Kunti! Now I will tell you about the special virtuous deeds and charities ordained for the faithful devotees on Nirjala Ekadashi. On this day, one should worship Lord Vishnu, Who lies in the water; and donate a cow. Brahmins should be thoroughly propitiated with money and varieties of sweetmeats. This surely pleases the Brahmins and once the Brahmins are pleased, Lord Vishnu blesses one with salvation. Those who observe the vrata of Nirjala Ekadashi by keeping their desires under control, observing self-restraint, engaging in charity and remaining awake at night, reserve a place in Lord Vishnu’s abode not only for themselves, but also for their past hundred generations along with a hundred generations of the future. On Nirjala Ekadashi, one should donate grains, clothes, cows, water, beds beautiful asanas, kamandalu and umbrellas. One who donates shoes to an excellent Brahmin – a worthy recipient, goes to heaven in a golden aircraft. One who listens to the glory of this Ekadashi with devotion, or relates it to others, will go to heaven. The fruits that one attains by offering shraaddha to the manes at the time of a solar eclipse on a New Moon day, which coincides with the fourteenth lunar day, are obtained by listening to this narration as well. Firstly, one should clean one’s mouth and then take this vow, ‘To please Lord Vishnu, I shall observe a complete fast and renounce even water except for achamana on this Ekadashi day.’ Lord Vishnu should be worshipped on the Dvadashi day with incense, dhoops, flowers and beautiful clothes in the prescribed manner. Thereafter with a resolve to donate a pitcher full of water, one should chant the following mantra,।
देवदेव हृषीकेश संसारार्णवतारक ।।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम् ।।।
‘O God of gods! O Lord Vishnu! You deliver men from the bondage of this word. Pray kindly lead me to salvation upon donating this water-filled pitcher.’।